बुधवार, 27 फ़रवरी 2013


तू फिर आएगा यहाँ 

वो जो नन्ही लड़की तुझे नहर के इस पार से दिख रही हैं,
क्या तू जानता नहीं कि लड़की और नहर के बीच में,
पानी है , रेत है और पुलिया टूटी हुई है !
आह्लादित घने बादलों के आकाश के नीचे ,
दूर तक फ़ैली हरियाली के मनोरम दृश्यों के बीच,
पिंडलियों तक घुसे कीचड़ का पानी और मिट्टी  ,
रिस रिस कर बिवाईयों के छिद्रों से खून में जा मिलता है ,
और नन्ही लड़की के  चेहरे से ,
धरती की आभा छिटकने लगती है ,
वो तुझे सुन्दर दीखने  लगती है !
तू टोपी पहने गुनगुनाता है ,
दृश्य निहारता है ,सपने देखता है , 
अनगढ़ प्रकृति के उन्माद में खो जाता है ,
बस लड़की की आँख में नहीं झाँक पाता ! 
आँख के दर्द का शरीर की दमक का पुराना रिश्ता है,
और आँख में सपनों की चमक आने तक,
उस लड़की के वक्र  की सुघड़ता  गायब हो चुकी होगी !
लेकिन मैं जानता हूँ कि ,
तू फिर इस देस में आएगा ,
किसी और समय और कुछ इसी तरह के मौसम में,
चिंता तो तुझे है नहीं,
क्यूंकि कोई न कोई नन्ही लड़की ,
उन खेतों में जरुर होगी -जरुर होगी !
.............................................................संतोष ( 28 फरवरी , 2013)

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